टमाटर का सफर पोर्तगुईस से भारत तक 16-वि शताब्दी में पुर्तगालीयो के साथ हुआ | समय के साथ टमाटर भारतीय व्यंजनों में एक मुख्य अवयव के रूप में काफी प्रचलित हुआ | किसानो के मध्य टमाटर एक प्रमुख बागवानी फसल है ,वर्ष भर टमाटर की मांग सामान बानी रहती है | टमाटर का वैज्ञानिक नाम सोलानम ल्य्कोपेर्सिकम है तथा सोलेनेसी कुल के अंतर्गत आता है | इस ब्लॉग के माध्यम से टमाटर की खेती से सम्बंधित सभी तथ्यों पर चर्चा की जाएगी |

टमाटर की खेती के लिए सही समय एवं तापमान
- समय–
- टमाटर की फसल मुख्य रूप से वर्ष 2 पखवाड़ा में किया जाता है |
- टमाटर की एक फसल का समय खरीफ (जुलाई से अगस्त) में होता है |
- तथा दूसरी फसल का समय दिसम्बर से जनवरी (रबी) होता है |
- तापमान –
- भारत में क्षेत्र अनुसार तापमान में विवधता है |
- जंहा उत्तर भारत में तापमान 0°C से निचे चला जाता है |
- वही दक्षिण भारत में तापमान 40से 45°C के पास पहुंच जाता है |
- टमाटर के लिए सही तापमान न्यूनतम 14°C से 15°C के मध्य होना चाहिए |
- एवं अधिकतम 35°C से 36°C होना चाहिए |
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टमाटर की खेती के लिए अनुकूल मिट्टी
पुरे भारत वर्ष में अलग अलग जगह की मिट्टी की अलग अलग विशेषताएं होती है टमाटर आमतौर पर सभी तरह के मिट्टी मे बहुत अच्छी तरीके से होती है टमाटर के फसल मे विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है कि मिट्टी अधिक जल धारण क्षमता वाली न हो जिस से टमाटर के पैदावार तथा बढ़वार में परेशानियों का सामाना करना पढ़ सकता है भारत में पाए जाने वाली मिट्टी का संक्षिप्त विवरण
काली मिट्टी
काली मिट्टी टमाटर के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती काली मिट्टी मे जल धारण क्षमता अधिक होती है तथा कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा मे पाई जाती है पोषक तत्व की मात्रा अधिक होती है खनिज की मात्रा अधिक होती है जीवाणु की संख्या अधिक पाई जाती है |
लाल मिट्टी
लाल मिट्टी मे आयन की मात्रा अधिक पाई जाती है यह टमाटर के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होती है लाल मिट्टी काली मिट्टी की अपेक्षा कम जल धारण तथा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम होती है|
पीली एवं बालुई मिट्टी
पीली एवं बालुई मिट्टी मे कार्बनिक पदार्थ तथा जल धारण क्षमता बहुत ही कम पाई जाती है इस प्रकार के मिट्टी में खनिज पदार्थ की कमी पाई जाती है|
टमाटर की खेती के लिए बैड तैयार करना
टमाटर के लिए बैड महत्वपूर्ण है |खेत की अच्छे से गहरी जोताई 2-3 बार करे तथा रोटावेटर की सहायता से मिट्टी को भुरभुरा कर ले इसके बाद बैड का निर्माण करे |
बैड की माप
- क्यारी की दुरी 2.50 फ़ीट रखे|
- और बैड की ऊंचाई 1 फ़ीट होनी चाहिए |
- बैड की चौड़ाई 3 फ़ीट रखे |
बेसल डोज
बेसल डोज से तात्पर्य खेत के तैयारी के पश्चात् सभी प्रकार के खाद का पूर्व छिड़काव | बेसल डोज के छिड़काव के बाद खेत में नर्सरी लगाया जाता है |
खाद की मात्रा प्रति एकड़ के अनुसार
- गोबर की अच्छे से सड़ी खाद – 4 ट्राली
- DAP – 50kg
- SSP – 50kg
- MOP – 50kg
सिचाई
टमाटर में मुख्यतः दो प्रकार से सिचाई की जाती है –
- ड्रिप सिचाई
- नाली द्वारा सिचाई
1.ड्रिप सिचाई – यह सिचाई प्रणाली वर्तमान में काफी प्रचलित है इसे टपक सिचाई पद्धति भी कहते है | इस सिचाई पद्धति में कम पानी में अधिक क्षेत्र में सिचाई किया जा सकता है | टमाटर में 16MM की ड्रिप पाइप का उपयोग किया जाता है |
2. नाले के माध्यम से सिचाई – नाले द्वारा सिचाई एक पारम्परिक सिचाई विधि है | इस विधि से सिचाई करने पर खरपतवार का विशेष ध्यान देना पड़ता है | खरपतवार एवं पौधे के मध्य पोषक तत्व के लिए संघर्ष होता है |
- गर्मियों में सिंचाई 5-7- दिन में करनी चाहिए |
- सर्दियों में 10-15- दिनों में सिंचाई करना चाहिए |
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सहारा देना / स्टेकिंग
- टमाटर लता के सामान फैलते है उनको सहारा (स्टेकिंग) देना आवश्यक है |
- स्टेकिंग ना करने से फलो के खराब होने तथा बीमारी आने की संभावना बनी रहती है |
- टमाटर के पौध को बांस या किसी अन्य लकड़ी के द्वारा सहारा दिया जाता है|
टमाटर के कुछ उन्नत बीज
- पूसा शीतल – ठंडे इलाकों के लिए उपयुक्त है |
- पूसा एच 1- गर्मी और देर से लगाने के लिए उपयुक्त |
- अर्का मेघालय – अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए अच्छा रहता है |
- अर्का सौरभ – बड़े आकर के फल होते है |
टमाटर में रोग एवं कीट प्रबंधन
टमाटर में लगने वाले प्रमुख रोग
1.ब्लाइट – यह रोग जीवाणु जनित रोग है | इस रोग का प्रभाव पत्तियों में दिखता है पत्तिया झुलस जाती है |
उपचार – कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3% का छिड़काव करे |
2.पत्तियों में कुचन(लीफ कर्ल) – यह एक विषाणु जनित रोग है | सफ़ेद मख्खी इसकी वाहक होती है |
उपचार – थायमेथाइसम 25 डब्लू जी की 5 ग्राम मात्रा 15 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करे |
जड़ का गलना /तना का विगलन –
उपचार – मैंकोजेब 0.3% द्वारा खेत का उपचार |
टमाटर में कीट प्रबंधन
फ्रूट बोरर ( फल छेदक)- यह टमाटर के फलो में छेद कर देता है |
सफ़ेद मक्खी – पत्तियों पिछले भाग में रहता है और पत्तियों के रस चूसने के साथ लीफ कर्ल रोग के वाहक के रूप में भी कार्य करती है |
दोनों कीटो का उपचार एक सामान होता है –
एसीफेट 2ml-/लीटर या इमिडाक्लोरपीड़ का 0.03-ml-/पानी में घोल कर छिड़काव करे |