मछली पालन (fish farming)

मछली में भरपूर मात्रा में प्रोटीन और विटामिन होने के वजह मछली को भोजन के रूप में लोकप्रिय है तथा यह जलीय जीव होने के साथ साथ जलीय पर्यावरण को भी संतुलित रखता है| विश्व में प्रोटीन के एक श्रोत के रूप में मछली की भूमिका महत्वपपूर्ण है | भारत के मधयवर्ती छेत्र में मीठे पानी के मछली का उपभोग अधिक किया जाता है जैसे – IMC(कार्प),तिलापिया ,कैटफिश आदि तथा भारत के तटीय छेत्र समुद्री मछलियों का उपभोग अधिक मात्रा में किया जाता है जैसे-पम्पलेट ,टूना आदि | इस ब्लॉग के माध्यम से मछली पालन से जुड़े मेरे अनुभव को आप से साझा करने का प्रयास कर रहा हूँ |

मछली पालन के लिए तालाब की तैयारी :-

  • सर्वप्रथम तालाब का निर्माण फ्रंट डोज़र लगे ट्रेक्टर से किया जाना चाहिए |
  • मिट्टी को तालाब के किनारो में मजबूती से मेड बना ले |
  • इससे पानी का बहाव बाहर की ओर नहीं होता |
  • तालाब निर्माण के समय jcb से तालाब के निर्माण से बचे |
  • क्योकि तालाब के मेड में मजबूती नहीं रहती |
  • जो अत्यधिक बरसात में अधिक जल भराव से मेड की टूटने के संभावना बनी रहती है |

तालाब का जलस्तर :-

  • तालाब निर्माण के समय तालाब की गहराई और जलभराव का विशेष ध्यान देना चाहिए |
  • तालाब में जलस्तर 4 फ़ीट से 4.5 फ़ीट रखे |
  • 1 मछली को लगभग 1 स्क्वायर फ़ीट जगह की आवश्यकता होती है |
  • मछली के स्वस्थ एवं 1kg पूर्ण विकास के लिए इतनी जगह आवश्यक है |

मछली पालन के लिए तालाब को अनुकूल बनाना :-

  • इस तरीके से तालाब को मछलियों के अनुकूल वातावरण देने के साथ साथ और प्राकृतिक भोजन का निर्माण भी होता है |
  • इसके लिए 1- एकड़ (40,000-स्क्वायर फ़ीट) के तालाब में 1500 kg बुझा चुना के घोल का छिड़काव करे |
  • और उसमे 1- ट्राली अच्छे से सड़ी गोबर की खाद का छिड़काव करे |
  • कुछ समय बाद पानी का रंग हरा हो जायेगा |
  • यह हरा रंग पानी में उपस्थित शैवाल के कारण होती है |
  • यह मछिलयों के लिए प्राकृतिक भोजन के रूप में काम आएगा |

भिन्न स्तरों में रहने वाली मछली :-

भिन्न स्तरों में रहने वाली मछली :-
  • मछलिया भोजन एवं निवास के अनुसार जल के तीन स्तर में रहना पसंद करती है |
  • अलग-अलग स्तर में रहने से खाद्य संघर्ष नहीं होता और मछली पालक अधिक मछलियों का पालन कर सकते है |
  • मछलियों में मुख के आकर को देख कर इसका अनुमान लगाया जा सकता है |
  • तीनो स्तरों में रहने वाली मछलिओं का विवरण –
  • 1.सतह में रहने वाली मछली(surface feeder)
  • यह मछली सतह में रहना पसंद कराती है |
  • यह सतह में ही भोजन ग्रहण करती है |
  • इनका मुख ऊपर की ओर उठा हुआ होता है | उदहारण – कातला
  • 2.मध्य में रहने वाली मछली (column feeder)
  • इस प्रकार की मछलिया जल के मध्य सतह में रहना पसंद करती है |
  • इस सतह में रह कर भोजन ग्रहण करती है |
  • इनका मुख आगे की ओर सीधा होता है | उदहारण- रोहू
  • 3.निचले स्तर में रहने वाली मछलिया(bottom feeder)
  • यह मछली जल के निचले सतह में रह कर भोजन ग्रहण करती है |
  • इनका मुख निचे की ओर होता है |

सरसो की खेती के बारे में पूरी जानकारी के लिए इस लिंक पर click करे

मछली पालन में जल प्रबंधन –

मछली पालन हेतु आवश्यक है की जल का प्रबंधन सुचारु से किया जाये | स्वस्थ मछलिओं के पालन के लिए आवश्यक है की जल का वातावरण उनके अनुकूल हो जल प्रबंधन से सम्बंधित विभिन्न पहलु जैसे तापमान,ph,ऑक्सीजन,अमोनिया आदि का ध्यान रखा जाना आवश्यक है –

जल प्रबंधन
जल प्रबंधन

तालाब का तापमान –

  • 26°C से 30°C के मध्य होना चाहिए |
  • यदि तालाब का तापमान अधिक होने लगे तो ताजे पानी का भराव तालाब में करे |
  • तालाब का PH-
  • जल का ph- 6.5 से 7.5 के मध्य रखे |
  • PH कंटोल करने के लिए 1 एकड मे 20 से 25 kg बुझा हुआ चुना को धीरे धीरे डाले
  • ऑक्सीजन >5 PPM अपना तालाब में ऑक्सीजन की मात्रा 5 PPM से अधिक होना आवश्यक होती है|
  • अमोनिया
  • अमोनिया < 0.5 PPM अमोनिया अधिक होने कंटोल करने के लिए एयरएसन का प्रयोग करना चाहिए
  • फीड को बंद कर दे यदि अमोनिया बढ़ जाए तो |
  • जीयो लाईट, यूका फ्रेश का उपयोग करे कुछ पानी को अंदर ताजे पानी डाले तथा पुराना पानी बाहर निकाले |
  • एक रस्सी में कुछ पत्थर बाँध का खींचे जिससे पानी से गैस निकल जाये | |
  • सालिनटी – सालिनटी से तात्यपर्य है पानी में लवण (खारापन) से है |
  • इसके संतुलित मात्रा मछलियों को लगी चोट से जल्द ठीक होने में सहायक है |
  • अधिक मात्रा से मीठे पानी की मछलिया जीवित रहने में कठनाई होती है |
  • तालाब की सालिनटी < 2 ppt होनी चाहिए |

मछली का खाद्य प्रबंधन :

मछली का भार5.10gm10.50gm50 -100100 – 500500
प्रोटीन प्रतिशत32 %32 %30 %28 %25 %
फीड की मात्रा6 %5 %4 %3 %2 %
खाद्य प्रबंधन
  • तालाब में मछलियों को डालते समय यदि मछली ऊँगली आकर (2-3-inch) की हो तो
  • सही खाद्य प्रबंधन एवं रोग प्रबंधन से 9- से 10- माह में मछलियों का आकर 1- kg- के आकर की हो जाती है |
  • मछलियों की प्रजाति एवं आकर पर मछलियों का बाजार मूल्य निर्धारित होता है |
  • 1 एकड़ के खेत में सालाना 5 से 7 लाख लगभग लाभ प्राप्त होता है |
  • मछलियों को दिन में 1 से 2 बार खाना देना चाहिए |
  • ठंड के मौसम में मछलिया खाना कम खाती है |
  • मछलियों के भोजन के निर्धारण के लिए तालाब में फीड डाल कर 1 से 2 घंटे बाद देखे यदि फीड बच गया है तो फीड की मात्रा काम कर दे |

रोग गरस्त मछली के लक्षण

  • आहार न लेना |
  • तालाब के सतह पर आ जाना |
  • मछली का गतिशील होना |
  • मछली के शरीर में लारनुमा चिपचिपा पदार्थ जमा हो जाता |
  • मछली के शरीर में भूरे रंग के धब्बो का आना |
  • . मछलियों का पेट फुलना |
  • मछली का मुह सूझ जाना ,गलफड़ो में सड़न
  • मछली के रोगो के रोगथाम के उपाए :-
  • समय समय पर तालाब के पानी को खाली कर नया पानी डाले |
  • संतुलित मात्रा मे भोजन दे |
  • संतुलित मात्रा मे मछली का पालन करे |
  • समय समय पर पानी की जाँच करे |

मछलियों में लगने वाले रोग

  1. जीवाणु जनित रोग
  2. परजीवी जनित रोग

जीवाणु जनित रोग

  • कालमनेरिस रोग – फ्लेक्सीलेक्टर कालमनोरिस नामक जीवाणु के कारण होता है इस बीमारी पहचाने का तरीका मछली के शरीर एवं गलफड़ो में घाव हो जाता है |
  • उपचार – 5 मिलीग्रमा एक पानी के बर्तन में पोटेशियम परमेगनेट के घोल मे 10 से 15 मिनट तक रखे
  • वाइब्रियोसिस रोग– विब्रियो नामक जीवाणु के कारण होता है तथा इस रोग में महली भोजन कम ग्रहण करती है शरीर मे लाल भुरे अच्छे तथा आँखों में सुजन आ जाना इस बीमारी के लक्षण हैं |
  • उपचार ऑक्सीटेट्रासीकलीन तथा सल्फोनामाइड को 8 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम भोजन के साथ मिलाकर देना चाहिए

परजीवी जनित रोग

  • ट्राइकोडिनोसिस रोग – ट्राइकोडिनोसिस परजीवी ड्राइकोडीना नामक प्रोटोजोआ से होता है|
  • यह मछली परजीवी के गलफड़ो में आक्रमण कर बढ़ती रहता हैं इस परजीवी के कारण मछली को श्वास लेने में कठिनाई होता है|
  • उपचार –
  • एक पानी के बर्तन में 1.5% सामान्य नमक 25 पी.पी.एम
  • कार्मेलिन में संक्रमित मछली को 1 से 2 मिनट पानी में डूबा कर रखे
  • लगरन्नुमा कृमि रोग– यह परजीवी लरनिया नामक पर जीवी से होता है इस रोग में मछली के त्वचा में घाव हो जाते हैं इस घाव से मछली मरने लगती है |
  • उपचार – एक पानी के बर्तन में 1.5% सामान्य नमक 25. P.P.M कार्येलिन में संक्रमित मछली को 1 से 2 मिनट पानी में डुबा कर रहते |

FAQs

मछली पालन के लिए कितना बड़ा तालाब चाहिए?

तालाब निर्माण के समय तालाब की गहराई और जलभराव का विशेष ध्यान देना चाहिए | तालाब में जलस्तर 4 फ़ीट से 4.5 फ़ीट रखे | 1 मछली को लगभग 1 स्क्वायर फ़ीट जगह की आवश्यकता होती है | मछली के स्वस्थ एवं 1kg पूर्ण विकास के लिए इतनी जगह आवश्यक है | तालाब का आकर बड़ा या छोटा हो सकता है सही मात्रा में मछलिया डालने पर मछलिया स्वस्थ रहती है |

मछली पालन में कितनी कमाई है?

मछलियों की प्रजाति एवं आकर पर मछलियों का बाजार मूल्य निर्धारित होता है | 1- एकड़ के खेत में सालाना 5- से 7- लाख लगभग लाभ प्राप्त होता है |

मछली कितने दिन में 1 किलो की हो जाती है?

तालाब में मछलियों को डालते समय यदि मछली ऊँगली आकर (2-3-inch) की हो तो सही खाद्य प्रबंधन एवं रोग प्रबंधन से 9- से 10- माह में मछलियों का आकर 1- kg- के आकर की हो जाती है |

Fish को दिन में कितनी बार खाना देना चाहिए?

मछलियों को दिन में 1 से 2 बार खाना देना चाहिए | ठंड के मौसम में मछलिया खाना कम खाती है | मछलियों के भोजन के निर्धारण के लिए तालाब में फीड डाल कर 1 से 2 घंटे बाद देखे यदि फीड बच गया है तो फीड की मात्रा काम कर दे |

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top