भिंडी खरीफ एवं गर्मियों की प्रमुख फसलों में से एक है | मूलतः भिंडी की उत्पत्ति अफ्रीका में हुआ | यह मालवेसी कुल से सम्बंधित है | भिंडी का उपयोग सब्जी एवं स्नैक्स आदि के रूप में किया जाता है | भिंडी में विटामिन A तथा B के साथ साथ आयोडीन की मात्रा भी भरपूर होती है | तने के रेशो से कागज निर्माण किया जाता है | यह उष्ण जलवायु का पौधा है | भारत भिंडी के शीर्ष फसल उत्पादक में से एक है | इस लेख के माधयम से मेरा प्रयास रहेगा की भिंडी की खेती से जुडी समग्र जानकारी आपके सामने प्रस्तुत करू |
भिंडी की खेती भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु भिंडी गर्म एवं नम वातावरण के लिए श्रेष्ठ माना जाता है | परन्तु उष्ण एवं उपोष्ण दोनों प्रकार के जलवायु में लगाया जा सकता है | बीज अंकुरण के लिए 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान श्रेष्ठ होता है | कम तापमान में बीज अंकुरण में कठिनाई आती है | यह ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है | खरीफ में फसल उत्पादन ग्रीष्मकाल की तुलना अधिक होती है | मिर्च की खेती
भिंडी की खेती के लिए खेत की तैयारी भिंडी के लिए बलुई दोमट मिटटी श्रेष्ठ होती है | मृदा का ph 6 से 6.8 के मध्य होना चाहिए | 2-3 बार खेत की जोताई कर खेत को भुरभुरा बना ले और पाटा चला दे | भिंडी के कुछ उन्नत बीज पूसा मखमली – येलो वाइन मोजेक वायरस के प्रति प्रतिरोधी | पूसा सावनी – संकर किस्म जो खरीफ एवं जायद दोनों में उपुक्त | अर्का अनामिका(selection 10)-YVMV प्रतिरोधी | वर्षा उपहार(HRB 9-2)-YVMV प्रतिरोधी और पत्ती के फुदके के प्रति सहनशील | भिंडी की खेती के लिए बीज रोपण एवं मात्रा फसल बीजदर समय कतार से कतार की दुरी पौध की दुरी वर्षा ऋतू की फसल 10-12kg/ha फरवरी-मार्च 40-45 cm 25-30 cm ग्रीष्म कालीन फसल 18-20kg/ha जून-जुलाई 25-30 cm 15-20 cm
बीज रोपण से पहले फफूंदीनाशक 3gm- मेन्कोजेब कार्बेन्डाजिम से बीजोपचार आवश्यक करे | वर्षा ऋतू में अधिक जल भराव से बचने के लिए उठी हुई पट्टियों का निर्माण करे | सिंचाई मार्च में 10-12 दिन में सिचाई करे | अप्रैल 7-8 दिनों के अंतराल में सिचाई करे | मई-जून 4-5 दिन में सिचाई करे | खेत में पर्याप्त नमी बना के रखे । खाद एवं उर्वरक प्रबंधन खाद एवं उर्वरक प्रबंधन 20 से 25 टन /हे अच्छे से सड़ी गोबर की खाद | नत्रजन 100kg/हे | फॉस्फेट 60kg/हे | पोटाश 50kg/हे | खरपतवार नियंत्रण नियमित रूप से निंदाई-गुडाई कर खेत को खरपतवार मुक्त बनाये | बोवाई के 20-25 दिन के बाद निंदाई-गुडाई करे | रासयनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्ल्यूक्लरेलिन 1.5 kg/है में सगीड़काव करे | रोग एवं कीट प्रबंधन भिंडी में लगने वाले प्रमुख रोग येलो वीन मोज़ेक (पीत शिरा रोग)-
येलो वीन मोज़ेक विषाणु जनित यह रोग भिंडी में लगने वाले प्रमुख रोग में से एक है | सफ़ेद मक्खी इस रोग की वाहक है | इस रोग में पत्तियों की शिराये पीली पड़ जाती है और अन्य भाग हरा रह जाता है | डाइमिथोएट 30 % E.C. की 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे | अथवा एसिटामिप्रिड 20 % S. P. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करे | पद गलन –
इस रोग का प्रभाव जड़ में होता है जड़ में गलन की समस्या आती है | इसके नियंत्रण के लिए ब्रेसिकोल या मेंकोजेब 0.3 % का छिड़काव करे | पाउडरी मिल्ड्यू –
इस रोग भिंडी की पत्तियों में सफ़ेद रंग के चूर्ण के रूप में धब्बे पड़ने लगते है | यह धब्बे तेजी से फैलते है इनका जल्द से नियंत्रण आवश्यक है अन्यथा उत्पादन में 30% तक की कमी देखने को मिलती है | उपचार – केलेक्सीन या केराथेन फफूंदीनाशक का उपयोग करे | भिंडी के प्रमुख कीट फल भेदक
यह रोग भिंडी एवं कपास का प्रमुख रोग है | इस रोग की इल्ली फल में छेद कर अंदर से खाने लगती है | तने में इसके प्रकोप से तना सुख जाता है | नियंत्रण – प्रोफेनफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. की 2.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे | सफ़ेद मक्खी
सफ़ेद मक्खी सफ़ेद रंग की मक्खी जो पत्तियों के कोमल भाग से रसपान करती है | नियंत्रण – एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे | ब्लिस्टर बीटल
इस कीट के लार्वा परभक्षी होते है और व्यस्क फूल एवं शाखाओ को नुक्सान करते है | लाल स्पाइडर माइट
माइट पत्तियों के तले संख्या बढ़ा कर पत्तियों का रास चूसते है | नियंत्रण – डाइकोफॉल 18.5EC 1-2ml/लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे | अथवा इथीयोन 50 EC 1-2ml /लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे |