धान की खेती (paddy farming) भारत में एक मुख्य खेती क्रिया है जो धान की उत्पादन के लिए की जाती है। यह खेती भारत के कुछ राज्यों में मुख्य रूप से की जाती है, जैसे कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि। धान खेती एक लाभदायक व्यवसाय होता है जो बहुत सारे किसानों को रोजगार उपलब्ध कराता है। इसके अलावा, धान का उत्पादन देश के अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसलिए, धान खेती एक महत्वपूर्ण खेती क्रिया है जो भारत के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस ब्लॉग के माध्यम से धान की खेती से सम्बंधित महत्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी सरलता से दिया गया है |
धान की रोपाई
धान की सीधी बोवाई वर्तमान में किसानो के मध्य काफी प्रचलित है क्योकि इसमें लागत कम ,कीट प्रकोप में कमी ,जल्द फसल तैयार हो जाता है एवं पानी भी कम लगता है |
श्री विधि से धान की खेती की खोज मेडगास्कर के वैज्ञानिक हेनरी दे लौलनिए 1980 में किया था| इस विधि को मेडागास्कर विधि भी कहा जाता है | इस विधि से धान की खेती करने से उत्पादन अधिक होती है, बीज की मात्रा कम ,पानी की मात्रा भी कम लगती है परन्तु मजदूरी में थोड़ा अधिक व्यव होता है |
धान के उन्नत बीज का चयन अति आवश्यक है ताकि उत्पादन अधिक हो और स्वस्थ पौधे का रोपण हो |
आगे दिए गए विधि से धान का बीजोपचार करे
धान की खेती (Paddy farming) से अधिक उत्पादन लेने के लिए धान के फसल में खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है धान की फसल मुख्य रूप से चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवार पाए जाते है उनके निवारण के लिए रासायनिक विधि आगे के लेख में दिया गया है :-
धान की खेती (Paddy farming) में फसल के अधिकाधिक उत्पादन के लिए खाद का उचित प्रबंधन अति आवश्यक है खाद के कम प्रयोग पौधे में पोषक तत्व की कमी हो जाती है जिससे उत्पादन में कमी आ जाती है और खाद के अधिक प्रयोग से खरतवार , कीट प्रकोप की अधिकता हो जाती है |इसलिए खाद का संतुलित उपयोग जरुरी है |
धान के खेत में तीन बार खाद का उपयोग करे प्रथम खाद का प्रयोग रोपाई के 10-15 दिन बाद खाद की दूसरी खुराख कल्ले फूटने से पहले और अंतिम खुराख धान में फूल आने से पहले करे | कई बार किसानो के पास DAP(Di-ammonium Phosphate) उपलब्ध नहीं होती इस स्थिति में SSP(Single Super Phosphate) का उपयोग करे इसलिए लेख में दोनों स्थिति में खाद के प्रयोग का वर्णन है :-
मिर्च की खेती के बारे में जानकारी
प्रथम छिड़काव
द्वितीय छिड़काव
तृतीय छिड़काव
प्रथम छिड़काव
द्वितीय छिड़काव
तृतीय छिड़काव
Tips :-
धान में रोपाई से लेकर फसल की कटाई तक विभिन्न प्रकार के रोग एवं कीट का खतरा बना रहता है | जिसका समय में निराकरण बहुत जरुरी है | समय पर निराकरण न करने पर किसान भाइयो को अंत में नुक्सान का सामना करना पड़ता है | धान में मुख्य रूप से दो प्रकार के रोग होते है 1. जीवाणुजनित 2.फंगल |
धान में बीजोपचार से अनेक रोगो का निवारण पहले से ही किया जा सकता है | इस लेख के माध्यम से रोग के लक्षण एवं कीटो की पहचान एवं नियंत्रण में सहायता मिलेगी :-
यह एक जीवाणुजनित रोग है | इसका प्रभाव पौध अवस्था से के कर दाने लगने के अवस्था तक होता है |
लक्षण –
नियंत्रण –
यह एक फफूंदजनित रोग है | इस रोग की सम्भाना पौध से लेकर दाने लगने की अवस्था तक होता है |
लक्षण –
नियंत्रण –
धान में लगने वाला रोग है यह मुख्यतः जिंक की कमी के कारन होता है |
लक्षण –
नियंत्रण –
यह रोग दाने आने की अवस्था में होता है | इस रोग से धान की बाली को बहुत अधिक नुकसान होता है| यह एक कवकजनित रोग है |
लक्षण –
नियंत्रण –
मौसम में बदलाव,खाद का अधिक प्रयोग,फसल चक्र के अनुपालन न करने से , बाढ़ की अवस्था में कीट प्रकोप की समस्या देखने को मिलता है |
लक्षण – इस कीट की इल्ली अपने लार से पत्तियों के किनारो को जोड़ देती है और बाद में वह पत्ता सुख जाता |
नियंत्रण-ट्राइजोफॉस 40 ई.सी.प्रोफेनोफॉस 44 ई.सी 400ml/एकड़ + साइपरमेथ्रिन 4 ई.सी. 300ml/एकड़ कीट के प्रकोप होने पर छिड़काव करे |
लक्षण – इस कीट का प्रकोप कल्ले निकलने के समय होता है धान के रोपाई के बाद लगभग 30- दिनों बाद सफ़ेद रंग का कीट खेतो में आ जाता है जो बाद में अपने लार्वा को तना में छोड़ देता है जिससे बाद में धान का पौधा सुख जाता है |
नियंत्रण-कार्बोफ्यूरान 3 जी या कार्टेपहाइड्रोक्लोराइड 4 जी 10kg/एकड़ छिड़काव करे |
लक्षण -यह मुख्य रूप से रस चूसक कीट है |जब धान के पौध में दूध भराव का समय होता है उस समय इन कीटो का प्रकोप दीखता है|
नियंत्रण-एसिटामिप्रिड 20 % 50kg-/एकड़ तथा एस.पी.बुफ्रोजिन 25 % एस.पी. 300ml-/एकड़ दवा का उपयोग कीट प्रकोप की अवस्था में करना चाहिए |
भारत एक कृषि प्रधान देश है,उसमे धान की खेती व्यापक रूप से किया जाता है | भारत विश्व में धान उत्पादन में द्वितीय स्थान पर है देश में सर्वाधिक धान का उत्पादन वेस्ट बंगाल में किया जाता है | इस ब्लॉग के माध्यम से धान की खेती (Paddy farming) के विषय मैंने अपने अनुभव को प्रस्तुत करने का प्रयास किया आशा करता हु इस ब्लॉग से आपकी मदद हुई हो |
धान की फसल में यूरिया का छिड़काव तीन बार करे प्रथम खाद का प्रयोग रोपाई के 10-15 दिन बाद खाद की दूसरी खुराख कल्ले फूटने से पहले और अंतिम खुराख धान में फूल आने से पहले करे |
प्रथम यूरिया का छिड़काव 25kg/एकड़
दूसरा छिड़काव 15kg / एकड़
तीसरा छिड़काव 10kg/ एकड़
धान की रोपाई करने पर – कम अवधि के लिए फसल में पौध से पौध की दुरी 15x15cm तथा लाइन से लाइन की दुरी 15x15cm में रोपा लगाना चाहिए |
अधिक अवधि के धान के फसल के लिए पौध की दुरी 15x15cm तथा लाइन की दुरी 20x20cm होना चाहिए |
श्री विधि द्वारा धान की रोपाई करने पर पौध की दुरी –
पौध के मध्य दुरी 25x25cm रखना है 1 मीटर में लगभग 16 पौधे होते है |
एक एकड़ में DAP खाद की मात्रा 50kg होनी चाहिए |
प्रति एकड़ धान का उत्पादन 30-35 कुन्टल होता है |
जलवायु ,मृदा ,खाद प्रबधन ,कीट एवं रोग नियंत्रण आदि तथ्यों से धान के उत्पादन में प्रभाव पड़ता है |
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