दलहन

चना की खेती

दलहन फसलों में चना की खेती एक महत्त्वपूर्ण फसल है | चना को दलहन फसलों का राजा कहा जाता है | यह रबी की फसल है | खरीब फसल की कटाई के पश्चात् चना की खेती की जाती है | इसमें 21.1% प्रोटीन पाया जाता है | किसान भाई यदि चाहे तो चना एवं सरसो की मिश्रित खेती कर सकते है | विश्व में चना के उत्पादन की बात करे तो भारत प्रथम उत्पादक देश है | विश्व का 65% क्षेत्र तथा 80% चना का उत्पादन भारत में किया जाता है | चना की उत्पत्ति दक्षिण पश्चिम एशिया से माना जाता है| इस लेख के माध्यम से चना के अधिक से अधिक उत्पादन के लिए जानकारी दिया गया है |

जलवायु एवं मृदा

  • चना के वृद्धि के लिए 21℃ से 24℃ तापमान उपयुक्त होता है |
  • चना रबी की प्रमुख फसल है |
  • चना पाले के प्रति सवेदनशील होता है |
  • चना की फसल में बोन के समय और फूल लगने के समय वर्षा चना की फसल के लिए हानिकारक है |
  • चना की खेती के लिए दोमट एवं काली मिटटी उपयुक्त होती है |
  • मृदा का PH मान 5.7 से 7.2 होना चाहिए |
  • चना क्षारीय मिट्टी के प्रति संवेदनशील होता है|

चना की खेती के लिए बीज दर

चना की मुख्यतः दो प्रजातियां पायी जाती है –

1.देशी चना या खैरी चना

  • यह देश में व्यापक क्षेत्र में बोया जाता है |
  • दानो का आकर छोटा एवं रंग भूरा होता है |
  • बीजदर – 25 से 35 kg/ एकड़ तथा देर से बोवाई से 35 से 40 kg /एकड़

2.काबुली चना या सफ़ेद चना

  • यह आकर में बड़ा होता है |
  • देशी चना के मुकाबले इसकी उपज काम होती है |
  • बीजदर- 30 से 40 kg /एकड़

बीजोपचार

चना के बीजोपचार के लिए FIR का उपयोग करना चाहिए –
F- Fungicide
I- Insecticide
R- Rhizobium
उदहारण – बाविस्टीन 3g/कग + क्लोरीपारिफॉस 450ml /100kg बीज
या
थायरम 1gm / कग + कार्बेन्डाजिम 1gm/kg बीज

  • कीटनाशक एवं फफूंदीनाशक से बीजोपचार करने के पश्चात
  • 3 पैकेट राइज़ोबियम /100kg बीज में मिलाये
  • राइजोबियम से बीजोपचार से पौधे की बढ़वार अच्छी होती है और
  • साथ ही जड़ो की संख्या में वृद्धि होती है |

चना की खेती के लिए बोवाई उचित समय

  • चना के बोवाई के लिए ऑक्टूबर माह के 15 तारीख से उचित समय होता है |
  • पछेती बोवाई से फल्ली छेदक कीट का प्रकोप दिखता है |

चना की उन्नत किस्मे

1.देशी चना
अर्पण (RSG-896), अरुणा (RSG-902),पूसा -256,प्रगति (TCCV-10),उदय (KPG-59),पूसा-372,ST-4 आदि
2.काबुली चना की किस्मे –
C104,L-550,GNG-1292,गिरनार,पूसा -1003,L-144 आदि `

चना की बोवाई

  • खेत की अच्छे से कल्टीवेटर एवं रोटावेटर से जोताई के पश्चात्
  • सीड ड्रिल मशीन के माध्यम से 30x10cm की दुरी पर बीज की बोवाई करे |
  • बीज की गहराई 8-10cm होनी चाहिए |
  • कतार में बोवाई से खरपतवार नियंत्रण में सुगमता के साथ-साथ पौधे के बढ़वार में लाभकारी होती है |

टॉपिंग

  • देशी चने में टॉपिंग से फूल एवं फल्लिया अधिक बनती है |
  • टॉपिंग में जब पौधे 35 दिन के हो जाये तब
  • पौधे के ऊपरी भाग को तोडा जाता है |

खाद प्रबंधन

  • खेत की तैयारी के समय 4 से 5 टन अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद डाले|
  • चना की खेती के लिए 8 से 10kg नाइट्रोजन , 25kg फास्फोरस ,8kg पोटाश प्रति एकड़ खाद की आवश्यकता होती है |
  • पाले से बचाव के लिए सल्फूरिक एसिड 0.1% का छिड़काव करे |

सिंचाई

  • प्रायः सभी दलहन फसल में सिचाई फूल आने से पहले( लगभग 40 से 45 दिन में ) एवं फल्लिया बनने के समय सिंचाई करनी चाहिए |
  • चना की फसल में अधिक सिंचाई से बचना चाहिए |
  • अधिक सिंचाई से पौधे में बढ़वार अधिक होती है |
  • इससे उपज में कमी आती है |

चना की खेती में खरपतवार नियंत्रण

  • किसी भी फसल में खरपतवार एक बड़ी समस्या होती है |
  • यह मुख्य फसल के साथ पोषक तत्व के लिए संघर्ष करता है |
  • जिसके परिणाम स्वरूप उपज में कमी देखने को मिलती है |
  • चना में मुख्यतः प्याजी खरपतवार पाया जाता है |
  • बोवाई से पहले पेंडामेथालींन 30EC 600g का 600 लीटर पानी में घोल कर डाले
  • बोवाई के समय 1kg/एकड़ की दर से ट्रिब्यूनल का छिड़काव करे |

चना में लगने वाले प्रमुख रोग

उल्टा रोग

  • यह एक कवक जनित रोग है |
  • इससे बचाव के लिए अगेती बोवाई से बचे और बीज की 8 से 10cm में बोवाई करे |
  • बोवाई से पहले बीजोपचार करे |

झुलसा रोग

  • यह एक कवक जनित रोग है |
  • नियंतरण- 0.3% कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करे |

रोली रोग – प्रतिरोधी किस्म – गौरव
स्क्लेरोटिनिया – प्रतिरोधी किस्म गौरव ,पूसा 261

कीट प्रबंधन

कट वर्म –

  • इस कीट का प्रकोप नर्सरी अवस्था में देखा जा सकता है |
  • नियंत्रण – मिथाइल पैराथिन 2% डस्ट 10kg/एकड़ बुरकाव करे |

फली छेदक

  • प्रारम्भ में पत्तियों तथा बाद में फल्ली को नुक्सान पहुँचता है |
  • नियंत्रण – मेथालियान पाउडर 5% डस्ट 10kg/ एकड़ की दर से छिड़काव करे या मोनोक्रोटोफॉस दवा 1ml/ लीटर की दर से छिड़काव करे |
Gajendra & Pawan Kodopi

Share

Recent Posts

ड्रैगन फ्रूट की खेती

ड्रैगन फ्रूट की खेती ड्रैगन फ्रूट की खेती से करे लाखो का मुनाफा एक बार… Read More

5 months ago

बकरा पालन

पशुपालन मानव सभ्यता के विकास में बहुत ही महत्वपर्ण रहा है | कृषि से पूर्व… Read More

6 months ago

जैविक यूरिया कैसे बनाये

फसल में बढ़वार के लिए पोषक तत्व की पूर्ति अति महत्वपूर्ण है इसमें यूरिया एक… Read More

1 year ago

वर्मी कम्पोस्ट खाद

कार्बनिक पदार्थ जैसे पशुओ के अपशिष्ट पदार्थ,फसल से बचा पराली आदि को केंचुए के माध्यम… Read More

1 year ago

गेहूं की खेती

विश्व में गेहूं पोषण के प्रमुख श्रोत है | भारत में गेहूं की खेती नवपाषाण… Read More

1 year ago

गोबर की खाद कैसे बनाये (Farm Yard manure)

मानव सभ्यता के विकास में कृषि का योगदान महत्वपूर्ण रहा है | कृषि में गोबर… Read More

1 year ago