विश्व में गेहूं पोषण के प्रमुख श्रोत है | भारत में गेहूं की खेती नवपाषाण काल में भी विभिन्न स्थानों में किया जाता रहा है | गेहू में कार्बोहाइड्रेट्, ग्लूटीन प्रोटीन ,विटामिन ,वसा आदि पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते है | गेहूं रबी फसल की प्रमुख फसल है , भारत के उत्तरी राज्यों में गेहूं की खेती अधिक प्रचलित है उत्तर प्रदेश क्षेत्र में सर्वाधिक एवं पंजाब उत्पादन में अग्रणी राज्य है | गेहूं भारत में चावल के बाद सर्वाधिक खाया जाने वाला आनाज है | धान की अपेक्षा गेहूं में पानी की कम मात्रा लगती है इस लिए किसानो में खरीफ की फसल के बाद गेहूं की फसल प्रचलित है | इस पोस्ट के माध्यम से गेहूं की खेती से जुड़े सभी पहलु पर विस्तार से चर्चा की जाएगी |
गेहूं के अच्छे उत्पादन के लिए बलुई दोमट एवं काली मिटटी श्रेष्ठ रहती है तथा मृदा का PH मान 5 से 7 के मध्य अच्छा होता है |
गेहूं की अगेती किस्मे | गेहूं की पछेती किस्मे | असिंचित क्षेत्र हेतु |
GW-190,GW-173,HD-2687,WH-542,UP2338 | RAJ- 3765 , GW-190,HD-2285,HP-1744,HW-2045,SWATI, J-405, SONALIKA, RAJ-4083 | KUNDAN, MUKTA(HI-385),SUJATA,PBW-175 |
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किसी भी फसल में खाद प्रबंधन आवश्यक है अधिक खाद के छिड़काव से पौधे अपनी आवश्यक मात्रा अवशोषित कर अतिरिक्त पोषक को अवशोषित नहीं कर पाती है और कम खाद की मात्रा से उत्पादन में कमी देखने को मिलती है | इस लिए आवश्यक है की खाद की मात्रा संतुलित हो ना अधिक हो ना कम |
गेहूं की खेती में नत्रजन,फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा –
नाइट्रोजन – 45 kg /एकड़
फास्फोरस – 25 kg/एकड़
पोटाश – 15 kg/एकड़
इसके अतिरिक्त 5kg ज़िंक ,सल्फर – 5kg, जायम – 10kg एवं 1kg ह्यूमिक एसिड का प्रति एकड़ छिड़काव बोवाई के पश्चात करे |
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गेहूं में 5- से 6- बार सिचाई करने की आवश्कता होती है | गेहूं की फसल में निम्नलिखित समयावधि सिचाई करे –
सिंचाई | अवस्था | अवधि |
प्रथम सिंचाई | जड़ पकड़ने की अवस्था | 21 दिन |
दूसरी सिंचाई | कल्ले फूटने की अवस्था में | 45-50 दिन |
तीसरी सिंचाई | जोड़े की अवस्था | 60-70 दिन |
चौथी सिंचाई | बालिया आने की अवस्था | 80-90 दिन |
पांचवी सिचाई | दाने दूध की अवस्था में | 100-110 दिन |
छटवी सिंचाई | पकने की अवस्था में | 115-125 दिन |
आसमान मौसम एवं अधिकाधिक खाद का प्रयोग से गेहूं में कीट का प्रकोप देखा जा सकता है |गेहूं में लगने वाले प्रमुख कीट –
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कवक जनित रोग –
अन्य रोग
पुराने समय में उत्तर भारत गेहूं की फसल के लिए पश्चिमी विक्षोभ की वर्षा पर निरतभर करता था परन्तु वर्तमान में पर्यावरण में परिवर्तन से वर्षा अनिश्चित हो गयी है | वर्त्तमान में सिचाई के उचित साधन होने से समस्या नहीं आती | गेहूं की भारत के साथ पुरे विश्व में सामान रूप से मांग रहती है | किसान भाई इसके अच्छे उत्पादन से अच्छा लाभ कमा रहे है इस लेख के माध्यम से मै आशा करता हूँ मैंने गेहूं के खेती से जुड़े सभी पहलुओ पर चर्चा की है |
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