रागी,मड़ुआ,मडिया जैसे भिन्न नामो देश में प्रचलित रागी पोषक तत्व से भरपूर अन्न है | वर्तमान में स्वस्थवर्धक भोजन के स्थान पर स्वाद वर्धक भोज्य पदार्थ से आमजन के स्वस्थ में गिरावट देखने को मिलता है | रागी में आवश्यक पोषक तत्व जैसे कार्वोहाइड्रेट्स,वसा,फाइबर के साथ-साथ कैल्सियम की प्रचुर मात्रा पायी जाती है जो हड्डियों के लिए आवश्यक तत्व है इसकी कमी से ओस्टियोपोरोसिस रोग हो जाता है इस रोग में हड्डियों से कैल्सियम निकल कर ब्लड में मिल जाती है | रागी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण शुगर से पीड़ित मरीज़ो के लिए यहाँ सुपर फ़ूड है | स्वस्थ संबधी समस्या को देखते हुए वर्तमान में रागी,कोदो कुटकी जैसे पौष्टिक आहार की मांग में वृद्धि हुई है | इस लेख के माध्यम से रागी की खेती से जुड़े समग्र तथ्यों पर चर्चा की गई है |
रागी की खेती में बीज दर
बीज की बोवाई दो विधि से की जाती है
1.छिड़काव विधि 2.बोवाई
1.छिड़काव विधि
- छिड़काव विधि में बीज को छिड़क कर बोया जाता है |
- चूँकि रागी के डेन छोटे होते है इस लिए बीजो को रेत के साथ मिला कर छिड़काव करे |
- रेत के साथ मिला कर बोवाई करने से पौधे कम सघन होते है और पैदावार में वृद्धि होती है |
- छिड़काव विधि में बीज दर 5 से 6kg प्रति एकड़ रहती है |
2.बोवाई
- इस विधि में पौध की नर्सरी लगा कर बोवाई की जाती है |
- इसमें कतार की दुरी 9 इंच तथा पौध की दुरी 4 इंच रखे |
- रोपाई के लिए बीज की मात्रा 4 से 5kg लगती है |
- रोपा के लिए नर्सरी जून में तैयार कर ले |
मक्का की खेती के बारे में पढ़े
पौध रोपण का सही समय
- रागी खरीफ की फसल है इसकी बोवाई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई तक कर लेना चाहिए |
- बोवाई से पहले बीजोपचार कर ले |
- बीजोपचार के लिए फफूंदीनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम का उपयोग करे |
- फफूंदीनाशक की मात्रा प्रति kg 3gm कार्बेन्डाजिम का उपयोग करे |

खेत की तैयारी
- कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की अच्छे से जोताई कर ले ताकि पूर्व फसल के अवशेष नस्ट हो जाये |
- रोटावेटर के माध्यम से मिट्टी को भूर भूरा बना कर पाटा चला दे |
खाद प्रबंधन
- अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति एकड़ 3 ट्राली डाले |
- नाइट्रोजन 15 से 17 kg प्रति एकड़ मात्रा |
- फास्पोरस 16 kg प्रति एकड़ |
- पोटाश 10kg प्रति एकड़ |
- बेसल डोज़ में 8 kg नाइट्रोजन एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत में डाले |
- 4kg नाइट्रोजन अंकुरण से समय डाले एवं 5kg नाइट्रोजन 40 से 45 दिन में डाले |
रागी की खेती के लिए उन्नत किस्मे
रागी की उन्नत बीजो का चयन अपने भूमि,जलवायु एवं उतपादन के अनुसार करना चाहिए | रागी की कुछ उन्नत किस्मे निम्नलिखित है -चिलिका,VL-149,RH-374,GPU-45,VL-149 आदि रागी की उन्नत किस्मे है |
NOTE-
- रागी कीफसल में खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है |
- बोवाई के 40 से 50 दिन की अवधी में खरपतवार नियंत्रण अतयंत आवश्यक है अन्यथा फसल में गिरावट आती है |
- बोवाई के 20 दिनों बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए 2, 4 डी. सोडियम की छिड़काव 400g प्रति एकड़ कली दर से छिड़काव करे |
- रागी की खेती जयाद में भी की जाती है |
सिंचाई
रागी की फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | बोवाई के 20-25- दिन में प्रथम सिंचाई करे और फूल एवं दाने आने पर सिंचाई करे |
रागी की खेती में रोग एवं प्रबंधन
- रागी में मुख्यतः फफूंदी जनित रोग का प्रभाव रहता है |
- समय पर उचित उपचार से रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है |
- रागी में निम्नलिखित फफूंदी जनित रोग लगते है –
भूरा धब्बा रोग-
इस रोग में रागी के पौधे में भूरे रंग के धब्बे बनने लगते है जो बाद में बढ़ कर पूरी पत्तियों में फ़ैल जाते है और इसका संक्रमण दानो में पहुंचने से उत्पादन में कमी देखने को मिलती है |
उपचार –
- इस रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 3gm प्रति 1kg बीज की दर से बीजोपचार करे |
- इस रोग का पौध ,में संक्रमण दिखने पर फफूंदीनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम की 120ml मात्रा 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करे |
झुलसा रोग –
इस रोग से ग्रस्त पौधे में भूरे रंग के धब्बे जो बढ़ कर पुरे पत्ती को झुलसा देती है पत्तिया मुख्य पौधे से सुख कर अलग हो जाती है इससे पौधे अचछे से प्रकाश संशलेषण नहीं कर पते और उत्पादन में कमी देखने को मिलती है |
उपचार –
- यह एक फफूंदजनित रोग है इसके उपचार हेतु फफूंदीनाशक से बीजो का उपचार करे |
- पौधे में अधिक प्रभाव दिखने पर भूरा धब्बा रोग के सामान कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करे |