तिल की खेती किसानो के लिए एक लाभदायक तिलहन फसल है | तिल को तिलहन फसल की रानी कहा जाता है | तिल की फसल एक कम लगत वाली फसल है | तिल की खेती में खाद की मात्रा कम लगने के साथ सिचाई की जरुरत भी अन्य फसल की तुलना में कम लगती है | तिल में लगभग 50% तिल पाया जाता है | इसमें 15% से 20% प्रोटीन पाया जाता है जो इसे एक स्वस्थवर्धिक खाद्य बनता है | तिल की उत्पति अफ्रीका से माना जाता है | इस लेख से तिल की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है |
उपुक्त जलवायु
- तिल की खेती के लिए नम और गर्म जलवायु अच्छा होता है |
- इसके अच्छे बढ़वार के लिए 25 30°C तक तापमान उचित होता है |
- तापमान में कमी से तिल के बीजो में अंकुरण की समस्या देखने को मिलती है |
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तिल की खेती के लिए उपयुक्त मृदा
तिल की खेती के लिए मृदा का ph 6 से 8 तक होना चाहिए |
इसकी फसल भारत के सभी मृदा के अच्छा होता है |
भारत में मुख्यतः काली,पीली,लाल बलुई , दोमट ,पीली दोमट लाल पीली आदि मिटटी पायी जाती है |
तिल की खेती की विशेषता यह है की इसमें ना अधिक खाद की आवश्यकता होती है और ना अधिक पानी की |
तिल की प्रमुख किस्मे
तरुण,VRI-1,Haryana Til-1,कृष्णा,प्रहत,T-12,T13,RT-46,TC-25,प्रताप(C-50),चेतक,RT-127(सूखा के प्रति अनुकूल)
तिल बोने का सही समय
- तिल की बोवाई करने का सही समय खरीफ सीजन में जून से जुलाई वर्षा ऋतू आने से पूर्व है |
- इसकी बोवाई 1 जून से जुलाई के पहले सपताह में लगाना उचित रहता है |
- ग्रीष्म कालीन या जायद में तिल लगाने का सही समय 1 फरवरी से मार्च माह तक होता है |
भूमि की तैयारी
- तिल की खेती के लिए भूमि की तैयारी करना आवश्यक है |
- पूर्व फसल को कल्टीवेटर के माध्यम से खेत में मिला दे |
- उसके बाद रोटावेटर या हैरो के माध्यम से खेत को भूर भूरा कर ले |
- जल निकासी की खेती में उचित व्यवस्था करे |
- भूमि की तैयारी के बाद बेसल डोज़ डाले |
- बेसल डोज़ में 25kg DAP ,30kg यूरिया, 30kg फॉस्फेट,10kg सल्फर डाल कर रोटावेटर के माध्यम से खेत में सामान रूप से फैला लेवे |
तिल की बुवाई
- किसान भाई आम तौर पर तिल की बुवाई छिड़काव विधि से करते है |
- बोवाई से पहले चाहिए की तिल के बीज की अच्छे से उपचारित करे |
- तिल की सघन बुवाई से बचने के लिए तिल को रेत के साथ मिला कर छिड़काव करे |
- एक एकड़ में तिल की बोवाई हेतु 1.5kg से 2kg बीज की आवश्यकता होती है |

सिंचाई
- तिल की फसल में पानी की मात्रा बहुत काम लगती है |
- तिल में 3 से 4 बार सिचाई की आवश्यकता होती है |
- खेत में नमी के अनुसार खेत की सिंचाई करे |
- तिल की प्रथम सिचाई बोवाई के समय करे |
- दूसरी सिचाई फूल आने से पहले करे |
- एवं तीसरी सिंचाई फल्लिया लगने के समय करे |
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रोग एवं उपचार
- तिल में मुख्यतः कीटजनित रोग अधिक लगने की संभावना होती है |
- तिल में सफ़ेद मक्खी,ग्रीन फ्लाई,ब्लैक फ्लाई इस प्रकार के कीटो का प्रकोप रहता है |
- इनके प्रकोप दिखने पर Cypermethrin को 15 लीटर में 20ml डाल कर स्प्रे करे |
उत्पादन
- तिल के फसल का उत्पादन 3 से 5 क्यूटल उत्पादन होता है |
- तिल की मांग वर्ष भर रहती है परन्तु ठण्ड में किसकी मांग बढ़ जाती है |
- तिल का भण्डारण कर सही समय में उसकी बिक्री कर अधिक लाभ कमाया जा सकता है |
तिल की फसल की कटाई
- तिल की समय पर कटाई करना जरुरी है अन्यथा फल्लिया सुख जाने से फट कर खेत में ही गिर जाती है |
- फल्लियो का रंग पीला हो जाये और अच्छे से मोटाई आ जाये |
- फल्लियो में नमी हो उस समय फसल की कटाई करनी चाहिए |
- फसल की कटाई कर उससे पन्नी में बांध कर रखे |
- समय के साथ फल्लिया काली पड़ जाती है उस समय उसे हार्वेस्टर के माध्यम से दानो को अलग कर ले |