रागी,मड़ुआ,मडिया जैसे भिन्न नामो देश में प्रचलित रागी पोषक तत्व से भरपूर अन्न है | वर्तमान में स्वस्थवर्धक भोजन के स्थान पर स्वाद वर्धक भोज्य पदार्थ से आमजन के स्वस्थ में गिरावट देखने को मिलता है | रागी में आवश्यक पोषक तत्व जैसे कार्वोहाइड्रेट्स,वसा,फाइबर के साथ-साथ कैल्सियम की प्रचुर मात्रा पायी जाती है जो हड्डियों के लिए आवश्यक तत्व है इसकी कमी से ओस्टियोपोरोसिस रोग हो जाता है इस रोग में हड्डियों से कैल्सियम निकल कर ब्लड में मिल जाती है | रागी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण शुगर से पीड़ित मरीज़ो के लिए यहाँ सुपर फ़ूड है | स्वस्थ संबधी समस्या को देखते हुए वर्तमान में रागी,कोदो कुटकी जैसे पौष्टिक आहार की मांग में वृद्धि हुई है | इस लेख के माध्यम से रागी की खेती से जुड़े समग्र तथ्यों पर चर्चा की गई है |
बीज की बोवाई दो विधि से की जाती है
1.छिड़काव विधि 2.बोवाई
1.छिड़काव विधि
2.बोवाई
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रागी की उन्नत बीजो का चयन अपने भूमि,जलवायु एवं उतपादन के अनुसार करना चाहिए | रागी की कुछ उन्नत किस्मे निम्नलिखित है -चिलिका,VL-149,RH-374,GPU-45,VL-149 आदि रागी की उन्नत किस्मे है |
NOTE-
रागी की फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | बोवाई के 20-25- दिन में प्रथम सिंचाई करे और फूल एवं दाने आने पर सिंचाई करे |
इस रोग में रागी के पौधे में भूरे रंग के धब्बे बनने लगते है जो बाद में बढ़ कर पूरी पत्तियों में फ़ैल जाते है और इसका संक्रमण दानो में पहुंचने से उत्पादन में कमी देखने को मिलती है |
उपचार –
इस रोग से ग्रस्त पौधे में भूरे रंग के धब्बे जो बढ़ कर पुरे पत्ती को झुलसा देती है पत्तिया मुख्य पौधे से सुख कर अलग हो जाती है इससे पौधे अचछे से प्रकाश संशलेषण नहीं कर पते और उत्पादन में कमी देखने को मिलती है |
उपचार –
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