ठंडी के सब्जियों में राज करने वाली मटर का इतिहास ग्रीस,सीरिया,तुर्की,जॉर्डन आदि क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती थी समय के साथ मटर की खेती पुरे यूरोप तथा पूर्वी भारत में फ़ैल गयी | मटर पोषक तत्व से भरपूर रहता है इसमें प्रोटीन 25% तथा कार्बोहायड्रेट 64% पाया जाता है | मटर का प्रयोग दाल एवं सब्जी में किया जाता है | भारत में मटर के उत्पादन एवं क्षेत्र में उत्तरप्रदेश अग्रणी राज्य है | इस लेख के माध्यम से मटर की खेती कैसे की जाती है इसके सबंध में सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे |

मटर के उन्नत किस्मे
मटर की दो प्रजातियां पायी जाती है
1.फिल्ड पी
2.गार्ड़न पी
1.फिल्ड पी
- मटर की इस प्रजाति का उपयोग दाने ,चारा एवं हरी खाद के रूप में किया जाता है |
- फिल्ड पी मटर के फूलो का रंग लाल होता है प्रमुख किस्मे निम्नलिखित है –
- रचना,T-163,RPG-3,DMR, सपना,हंस आदि
2.गार्ड़न पी-
- इस प्रजाति के मटर का प्रयोग सब्जियों में किया जाता है |
- इसके फूलो का रंग सफ़ेद होता है | प्रमुख फसल किस्मे निम्न लिखित है –
- आर्केल,आजाद P-1,GC-141,अर्का अजीत,आर्किल आदि |
मटर की खेती के लिए खेत की तैयारी
- खरीफ फसल के बाद कल्टीवेटर से खेत की अच्छे से जोताई करवाए |
- खेत की मृदा में अच्छे वायु संचार के लिए रॉटवेर के माध्यम से मिट्टी को भुरभुरा कर लेवे |
- उचित जल निकास के लिए केट में नाली का निर्माण करे |
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मटर की खेती के लिए बीज दर
- दाने के लिए 30- से 35kg प्रति एकड़
- अगेती और सब्जी के लिए 35-50kg प्रति एकड़
- पौधे में क़तर से क़तर की दुरी 30x10cm रखे
बीजोपचार
- कार्बोक्सिन 37.5% + थिराम 37.5% 5W को
- एक किलोग्राम बीज में 3gm मात्रा डाल कर अच्छे से मिलाये
- बीज के उपचार के बाद 24 घंटो के लिए पानी में अंकुरित करे ताकि अंकुरण अच्छे से हो |
- तत्पश्च्यात बीज की खेत में बोवाई कर दे
मटर की खेती में खाद प्रबंधन
मटर में खाद की मात्रा अधिक नहीं लगती संतुलित खाद के प्रयोग से कम लगत में मटर का अधिक उत्पादन लिया जा सकता है | मटर में बेसल डोज़ आवश्यक है इसकी मात्रा निम्न है –
- इसमें SSP- 100kg प्रति एकड़
- तथा MOP- 30kg प्रति एकड़ की दर से खेत में छिड़काव करे |
बोवाई के 30- दिन बाद –
- यूरिया 45kg प्रति एकड़
- माइक्रोन्यूट्रेन्ट 5kg प्रति एकड़
- सल्फर 5kg प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे
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मटर में लगने वाले प्रमुख रोग
छाछया रोग – यह एक कवक जनित रोग है |
नियंत्रण – सल्फर 10kg प्रति एकड़ का बुरकाव या 0.5% केराथेंन का छिड़काव |
सूखा रोग – यह भी एक कवक जनित रोग है |
नियंत्रण – बाविस्टिन 3g/kg बीज की दर से बीजोपचार करे |
उगठा रोग – इस रोग से ग्रस्त पौधो की पत्ती सुख जाती है
उपचार – कार्बेन्डाजिम 50% wp 400gm दवा 200 लीटर पानी में मिला कर ड्रेचिंग कर दे |
झुलसा रोग – इस रोग से पत्तियों में धब्बेदार आकृति बन जाती है |
उपचार – मैंकोजेब 75% wp- 800gm- 250- लीटर पानी में मिला कर पौध की जड़ो में डाले |
प्रमुख कीट –
- तना मक्खी
- लीफ माइनर
- पोड बोरर