गेहूं की खेती

विश्व में गेहूं पोषण के प्रमुख श्रोत है | भारत में गेहूं की खेती नवपाषाण काल में भी विभिन्न स्थानों में किया जाता रहा है | गेहू में कार्बोहाइड्रेट्, ग्लूटीन प्रोटीन ,विटामिन ,वसा आदि पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते है | गेहूं रबी फसल की प्रमुख फसल है , भारत के उत्तरी राज्यों में गेहूं की खेती अधिक प्रचलित है उत्तर प्रदेश क्षेत्र में सर्वाधिक एवं पंजाब उत्पादन में अग्रणी राज्य है | गेहूं भारत में चावल के बाद सर्वाधिक खाया जाने वाला आनाज है | धान की अपेक्षा गेहूं में पानी की कम मात्रा लगती है इस लिए किसानो में खरीफ की फसल के बाद गेहूं की फसल प्रचलित है | इस पोस्ट के माध्यम से गेहूं की खेती से जुड़े सभी पहलु पर विस्तार से चर्चा की जाएगी |

गेहूं की खेती के लिए उचित मृदा एवं जलवायु

मृदा

गेहूं के अच्छे उत्पादन के लिए बलुई दोमट एवं काली मिटटी श्रेष्ठ रहती है तथा मृदा का PH मान 5 से 7 के मध्य अच्छा होता है |

जलवायु
  • गेहूं के बीज के उपयुक्त अंकुरण के किये आदर्श तापमान 20-25 °C के मध्य है |
  • पौध के बढ़वार अच्छे बढ़वार के लिए 16-22 °C का तापमान उचित होता है |
  • गेहूं में परिपक्वता के समय 14 से 15 °C तापमान उचित होता है |
  • गेहूं की फसल में अधिक तापमान (25°C) से गेहूं के दानो का वजन काम हो जाता है |

गेहूं की प्रमुख किस्मे

गेहूं की अगेती किस्मेगेहूं की पछेती किस्मेअसिंचित क्षेत्र हेतु
GW-190,GW-173,HD-2687,WH-542,UP2338RAJ- 3765 , GW-190,HD-2285,HP-1744,HW-2045,SWATI, J-405, SONALIKA, RAJ-4083KUNDAN, MUKTA(HI-385),SUJATA,PBW-175
गेहूं की प्रमुख किस्मे

बीजदर

  • समय पर बोवाई की स्थिति 40 kg प्रति एकड़ बीज की दर उपुक्त होती है |
  • देर से बोवाई और वर्षा अधिक क्षेत्र में 50 kg प्रति एकड़ की दर से बोवाई करे |

बीजोपचार

  • गेहूं के बीजो को फफूंद जनित रोग से बचने के लिए कार्बेन्डाजिम एवं मैंकोजेब के मिश्रण को 2-3 ग्राम प्रति kg की दर से बीजोपचार करे |
  • दीमक से बचाव के लिए 50 kg बीज में 230ml क्लोरोपायारीफोस के द्वारा उपचारित करे |

मिर्च की खेती (Chilli Farming) के बारे जानकारी प्राप्त करे

गेहूं की खेती के लिए खेत की तैयारी

  • धान की खेती के बाद खेत में थोड़ी नमी रह जाती है इस समय खेत की हैरो के माध्यम से जोताई कराये |
  • रोटावेटर एवं कल्टीवेटर के माध्यम से अच्छे जोताई करा कर खेत में पाटा के माध्यम से खेत को समतल कर ले |

गेहूं की बोवाई

  • खेत की तैयारी के बाद यदि खेत के खरपतवार नष्ट हो गए हो तथा खेत में पर्याप्त नमी हो तो गेहूं की बोवाई कर दे |
  • गेहूं की बोवाई के लिए उपयुक्त समय नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह से अंतिम सप्ताह उपयुक्त होता है |
  • गेहूं में पौध रोपण की दुरी 22.5 x 10 cm होनी चाहिए |

खाद प्रबंधन

किसी भी फसल में खाद प्रबंधन आवश्यक है अधिक खाद के छिड़काव से पौधे अपनी आवश्यक मात्रा अवशोषित कर अतिरिक्त पोषक को अवशोषित नहीं कर पाती है और कम खाद की मात्रा से उत्पादन में कमी देखने को मिलती है | इस लिए आवश्यक है की खाद की मात्रा संतुलित हो ना अधिक हो ना कम |

गेहूं की खेती में नत्रजन,फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा –
नाइट्रोजन – 45 kg /एकड़
फास्फोरस – 25 kg/एकड़
पोटाश – 15 kg/एकड़

इसके अतिरिक्त 5kg ज़िंक ,सल्फर – 5kg, जायम – 10kg एवं 1kg ह्यूमिक एसिड का प्रति एकड़ छिड़काव बोवाई के पश्चात करे |

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सिंचाई

गेहूं में 5- से 6- बार सिचाई करने की आवश्कता होती है | गेहूं की फसल में निम्नलिखित समयावधि सिचाई करे –

सिंचाई अवस्था अवधि
प्रथम सिंचाईजड़ पकड़ने की अवस्था21 दिन
दूसरी सिंचाईकल्ले फूटने की अवस्था में45-50 दिन
तीसरी सिंचाईजोड़े की अवस्था60-70 दिन
चौथी सिंचाईबालिया आने की अवस्था80-90 दिन
पांचवी सिचाईदाने दूध की अवस्था में100-110 दिन
छटवी सिंचाईपकने की अवस्था में115-125 दिन
सिंचाई

खरपतवार नियंत्रण

  • गेहूं में फेलेरिस माइनर या गुल्ली डंडा एक प्रमुख खरपतवार है यह गेहूं के सामान प्रतीत होता है |
  • इसके साथ-साथ एकबीजपत्री खरपतवार के लिए 1kg/ha सल्फोसल्फ्यूरान का छिड़काव करे |
  • द्वीबीजपत्री खरपतवार एवं सभी चौड़े पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण के लिए जैसे बथुआ, कृष्णनील,सेंजी आदि के लिए
  • 2,4D 0.5kg/ha की दर से बोवाई के 30 से 35 दिनों के बाद छिड़काव करे |

कीट

आसमान मौसम एवं अधिकाधिक खाद का प्रयोग से गेहूं में कीट का प्रकोप देखा जा सकता है |गेहूं में लगने वाले प्रमुख कीट –

  • आर्मी वर्म
  • दीमक – नियंत्रण -क्लोरपाइरीफॉस 450ml /100kg द्वारा बीजोपचार
  • खड़ी फसल में क्लोरपाइरीफॉस 4 ली /ha
  • एफिड
  • शूट फ्लाई
  • घुझिया विवल

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रोग एवं नियंत्रण

कवक जनित रोग –

  • भूरी गेरुई – समूचे देश इस रोग से अत्यदिक नुकसान होता है |
  • धारीधार रोली – इस रोग का प्रभाव गेहूं की बाली पर पड़ता है |
  • काली रोली – इस रोग का मुख्या प्रभाव तने में होता है |
  • नियंत्रण –इस रोग के लक्ष्ण दिखने पर मैंकोजेब 2kg/ha की दर से छिड़काव करे |

अन्य रोग

  • अनावृक्त काण्ड- यह रोग कवक जनित है इस रोग से पौध में वृद्धि कम होती है और दानो में श्याम चूर्ण बन जाता है |
  • नियंत्रण – बीजोपचार के समय विटावेक्स 2.5kg /kg से उपचारित करे |
  • कर्नल बंट – इस रोग का प्रभाव दानो में होता है दानो से गंध आती है |
  • टुंडा रोग – इस रोग के प्रभाव से बालियों में पीला गोंड जैसा पदार्थ निकलता है |
  • नियंत्रण- 20% नमक घोल से बीजोपचार करे |

पुराने समय में उत्तर भारत गेहूं की फसल के लिए पश्चिमी विक्षोभ की वर्षा पर निरतभर करता था परन्तु वर्तमान में पर्यावरण में परिवर्तन से वर्षा अनिश्चित हो गयी है | वर्त्तमान में सिचाई के उचित साधन होने से समस्या नहीं आती | गेहूं की भारत के साथ पुरे विश्व में सामान रूप से मांग रहती है | किसान भाई इसके अच्छे उत्पादन से अच्छा लाभ कमा रहे है इस लेख के माध्यम से मै आशा करता हूँ मैंने गेहूं के खेती से जुड़े सभी पहलुओ पर चर्चा की है |

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