उड़द पोषक तत्व से भरपूर होने के साथ वर्ष भर उड़द की मांग सामान रूप से बानी रहती है | भारत के किसानो के मध्य इसकी खेती काफी पसंद की जाती है | उड़द में प्रचुर मात्रा में पोटीन लगभग 25% पाया जाता है साथ ही मल्टीविटामिन भी पाया जाता है | उड़द की उत्पति की बात की जाये तो उदगम देश भारत माना जाता है | उड़द का कम अवधि की फसल होने के कारण देश विभिन्न स्थानों में किसान इसकी खेती कर लाभ कमा रहे है | इसलिए उड़द को नगदी फसल कहा जाता है |
उपयुक्त जलवायु
- इसकी खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 25 से 30°C उपयुक्त होता है |
- उड़द की फसल को ठण्ड में बढ़वार एवं अंकुरण में समस्या आती है |
उड़द की खेती के लिए उपुक्त मृदा
- भारत में लगभग सभी प्रकार के मृदा में इसकी खेती की जाती है |
- परन्तु उड़द की खेती के लिए दोमट एवं चिकनी दोमट मिटटी सर्वश्रेष्ठ होती है |
- अच्छे उत्पादन के लिए यह मृदा अच्छी मानी जाती है |

उन्नत किस्मे
- उड़द के उन्नत किस्मे का चयन उस क्षेत्र के जलवायु एवं मिटटी के अनुसार किया जाना चाहिए |
- किसान भाइयो को चाहिए की उस क्षेत्र के जलवायु के अनुसार संसोधित बीजो का चुनाव करना चाहिए |
- कुछ उन्नत किस्मे निनलिखित है – कृष्णा,नवीन,T9,आजाद,TUA-4 बरखा (RBU-38),IPU-2000 आदि उड़द की उन्नत किस्मे है |
बोवाई का सही समय
- मुख्य रूप से इसकी खेती वर्ष में दो बार जायद एवं खरीफ में की जाती है |
- उड़द मुख्य रूप से जायद में इसकी बोवाई के लिए मुख्यतः समय फरवरी से मार्च के मध्य होता है
- तथा खरीफ में जून से जुलाई में बोवाई किया जाता है |
उड़द की खेती के लिए खेत की तैयारी
- कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की अच्छी तरह 2 से 3 बार जोताई कर रोटावेटर से मिटटी को भुरभरा बना ले और
- पाटा चला कर खेत को समतल बना ले
- खेत में जल निकासी हेतु उपुक्त व्यवस्था होनी चाहिए |
- जल के अतिरिक्त जमाव से फफूंदजनित रोग की समस्या देखने को मिलती है |
- और छोटे पौधो में आद्रागलन की समस्या देखने को मिलती है |
बीजदर
- उड़द में बीज की मात्रा प्रति एकड़ 6 से 10kg होती है |
- बीजो का उपचार फफूंदीनाशक द्वारा करे उसके बाद ही बीज की बोवाई करे |
- बीज की बोवाई बेड बना कर या छिटकवां विधि द्वारा किया जा सकता है |
- छिटकाव विधि में बीज की मात्रा थोड़ी अधिक लगती है |
उड़द की खेती के लिए खाद प्रबंधन
- बेसल डोज़ – खेत की अंतिम जोताई के समय बेसल डोज़ डाले तथा पाटा से खेत को बराबर कर ले |
- बेसल डोज़ में यूरिया – 20 से 25kg, सागरिका दानेदार 5 से 10kg तथा DAP 30kg प्रति एकड़ की दर से डाले |
- 20 से 25kg यूरिया 20 दिन बाद डाले |
- 40 से 45 दिन में दूसरी खाद डाले |
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बीजोपचार
- उड़द की फसल हो या अन्य कोई फसल बीजोपचार बहुत ही जरुरी है |
- बीजोपचार से 70 से 80 % बीमारियों का निदान हो जाता है |
- बीमारियों में कमी से उत्पादन अच्छा होता है |
सिंचाई
- छिड़काव विधि से बोवाई करने के कुछ दिन बाद पश्चयात बीज अंकुरित होते है |
- अंकुरण के 15 दिन बाद खेत में प्रथम सिंचाई करे |
- उड़द में दूसरी सिंचाई पुष्प आने के समय एवं अंतिम सिंचाई दाने आने के समय करे |
- इसमें लगभग 3-4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है |
खरपतवार नियंत्रण
- उड़द हो या अन्य कोई फसल हो खरपतवार पर नियंत्रण आवश्यक है |
- खरपतवार मुख्य पौधे से पोषक तत्व के लिए संघर्ष करते है |
- इस संघर्ष के फलस्वरूप पौधे के विकास में बांधा आती है और उत्पादन में कमी आती है |
- उड़द में खरपतवार पर नियंत्रण के लिए अन्य पौधे को मजदुर द्वारा निकल सकते है |
- रासायनिक विधि से नियंत्रण के लिए पेंडामिथिलीन 30EC 1 लीटर प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करे |
- या पेंडामिथिलीन 30EC + इमाजियापायर 2EC की 1 लीटर मात्रा एक एकड़ में स्प्रे करे |
कीट एवं रोग प्रबंधन
- उड़द की फसल में मुख्यतः रस चूसक मक्खी,रस चूसक इल्ली एवं रोग में फफूंदीजनित एवं जीवाणु जनित रोग का प्रकोप अधिक होता है |
- रोग एवं कीट के प्रकोप से बचाव के लिए खेत का समय समय पर निरक्षण करे ताकि कीट एवं रोग के प्रकोप को पहचान कर उसका निदान किया जा सके |
रस चूसक कीट
- कीटो का प्रकोप फल्लिया आने पर देखने को मिलता है इसका प्रभाव फली एवं पत्तियों में देखने को मिलता है |
- यह रस चूसक कीट अपने अंडे दे कर संख्या में वृद्धि करती है |
- इसके नियंत्रण के लिए 20 से 25 दिन में निम्नलखित स्प्रे करे
- उपचार – थायोमीथोक्सिम 40gm प्रति एकड़ की मात्रा का 200 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करे |
रस चूसक इल्ली –
- उड़द में इल्ली का प्रकोप भी देखने को मिलता है जो दानो को खा कर उत्पादन में नुकसान पहुँचता है इसके नियंत्रण के लिए
- उपचार – नोवा ल्यूरॉन + एन्डोक्साकार्ब 350ml- मात्रा 200- लीटर पानी में मिला कर 1- एकड़ में छोडकाव करे |
- या इमामेक्टीन बेंजोएट 100gm- 200- लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव करे |
उड़द की खेती से उत्पादन
- उड़द कम अवधि की फसल होने के साथ बाजार मूल्य भी अच्छा मिलता है |
- इसका का प्रति एकड़ उत्पादन 4 से 5 क्यूटल होता है |